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Sudarshana Ashtakam in Hindi
Sri Sudarshan Ashtakam was composed by Sri Vedanta Desika. Sri Sudarshan Ashtakam is a highly powerful prayer dedicated to Lord Sudarshan, the main weapon of Lord Vishnu. It is believed that those who chant Sudarshan Ashtakam with devotion, all their wishes are fulfilled and will be able to remove any obstacle in life due to the wonderful boon-giving powers of Lord Sudarshan.
Those who recite Shri Sudarshan Ashtakam Stotram consisting of 8 verses in praise of Sudarshan, they understand the deep context of the glory of Lord Sudarshan and all their wishes will be fulfilled. The boon-giving powers of Lord Sudarshan will make him realize his all. Wishing you all the obstacles that come your way.
सुदर्शना अष्टकम
श्री सुदर्शनाष्टकं
प्रतिभटश्रेणि भीषण वरगुणस्तोम भूषण जनिभयस्थान तारण जगदवस्थान कारण ।
निखिलदुष्कर्म कर्शन निगमसद्धर्म दर्शन जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ॥
शुभजगद्रूप मण्डन सुरगणत्रास खन्डन शतमखब्रह्म वन्दित शतपथब्रह्म नन्दित ।
प्रथितविद्वत् सपक्षित भजदहिर्बुध्न्य लक्षित जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ॥
स्फुटतटिज्जाल पिञ्जर पृथुतरज्वाल पञ्जर परिगत प्रत्नविग्रह पतुतरप्रज्ञ दुर्ग्रह ।
प्रहरण ग्राम मण्डित परिजन त्राण पण्डित जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ॥
निजपदप्रीत सद्गण निरुपधिस्फीत षड्गुण निगम निर्व्यूढ वैभव निजपर व्यूह वैभव ।
हरि हय द्वेषि दारण हर पुर प्लोष कारण जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ॥
दनुज विस्तार कर्तन जनि तमिस्रा विकर्तन दनुजविद्या निकर्तन भजदविद्या निवर्तन ।
अमर दृष्ट स्व विक्रम समर जुष्ट भ्रमिक्रम जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ॥
प्रथिमुखालीढ बन्धुर पृथुमहाहेति दन्तुर विकटमाय बहिष्कृत विविधमाला परिष्कृत ।
स्थिरमहायन्त्र तन्त्रित दृढ दया तन्त्र यन्त्रित जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ।।
महित सम्पत् सदक्षर विहितसम्पत् षडक्षर षडरचक्र प्रतिष्ठित सकल तत्त्व प्रतिष्ठित ।
विविध सङ्कल्प कल्पक विबुधसङ्कल्प कल्पक जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ॥
भुवन नेत्र त्रयीमय सवन तेजस्त्रयीमय निरवधि स्वादु चिन्मय निखिल शक्ते जगन्मय ॥
अमित विश्वक्रियामय शमित विश्वग्भयामय जय जय श्री सुदर्शन जय जय श्री सुदर्शन ॥
फलश्रुति
द्विचतुष्कमिदं प्रभूतसारं पठतां वेङ्कटनायक प्रणीतम् ।
विषमेऽपि मनोरथः प्रधावन् न विहन्येत रथाङ्ग धुर्य गुप्तः ॥
॥इति श्री सुदर्शनाष्टकं समाप्तम् ॥
कवितार्किकसिंहाय कल्याणगुणशालिने ।
॥ श्रीमते वेन्कटेषाय वेदान्तगुरवे नमः ॥
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