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Shri Ram Janma Stuti Lyrics in Hindi
Shri Ram Janam Stuti is a very sweet eulogy, which is dedicated to Maryada Purushottam Lord Shri Ram. The life of Lord Shri Ram ji gives a message to every person to live a dignified and proud life. This sweet hymn dedicated to Shri Ram ji is taken from the Balkand of Shri Ramcharitmanas composed by Goswami Tulsidas.
This hymn is often sung on the occasion of Shri Ram Navami, but reciting it daily also gives the blessings of Rama. Lord Shri Ram ji is not only pleased with the recitation of this stuti, but also gets the blessings of Shri Hanuman ji because Hanuman ji is the ultimate devotee of Lord Shri Ram ji. Therefore, you should regularly sing Shri Ram Janma Stuti.
राम जन्म
भये प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ॥
लोचन अभिरामा तनु घनस्यामा निज आयुध भुज चारी ।
भूषन वनमाला नयन बिसाला सोभासिन्धु खरारी ॥
कह दुइ कर जोरी अस्तुति तोरी केहि बिधि करौं अनंता ।
माया गुअन ग्यानातीत अमाना वेद पुरान भनंता ॥
करुना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति संता ।
सो मम हित लागी जन अनुरागी भयउ प्रकट श्रीकंता ॥
ब्रह्मांड निकाया निर्मित माया रोम रोम प्रति बेद कहै ।
मम उर सो बासी यह उपहासी सुनत धीर मति थिर न रहै ॥
उपजा जब ग्याना प्रभु मुसुकाना चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै ।
कहि कथा सुहाई मातु बुझाई जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै ॥
माता पुनि बोली सो मति डोली तजहु तात यह रूपा ।
कीजे सिसुलीला अति प्रियसीला यह सुख परम अनूपा ॥
सुनि बचन सुजाना रोदन ठाना होइ बालक सुरभूपा ।
यह चरित जे गावहि हरिपद पावहि ते न परहिं भवकूपा ॥
बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ॥
अत्रि मुनि द्वारा स्तुति – अरण्यकाण्ड
नमामि भक्त वत्सलम् । कृपालु शील कोमलम् ॥
भजामि ते पदांबुजम् । अकामिनाम् स्वधामदम् ॥
निकाम् श्याम् सुंदरम् । भवाम्बुनाथ मंदरम् ॥
प्रफुल्ल कंज लोचनम् । मदादि दोष मोचनम् ॥
प्रलंब बाहु विक्रमम् । प्रभोऽप्रमेय वैभवम् ॥
निषंग चाप सायकम् । धरम् त्रिलोक नायकम् ॥
दिनेश वंश मंदनम् । महेश चाप खंदनम् ॥
मुनींद्र संत रंजनम् । सुरारि वृन्द भंजनम् ॥
मनोज वैरि वंदितम् । अजादि देव सेवितम् ॥
विशुद्ध बोध विग्रहम् । समस्त दूषणापहम् ॥
नमामि इंदिरा पतिम् । सुखाकरम् सताम् गतिम् ॥
भजे सशक्ति सानुजम् । शची पति प्रियानुजम् ॥
त्वदंघ्रि मूल ये नराह । भजंति हीन मत्सराह ॥
पतंति नो भवार्णवे । वितर्क वीचि संकुले ॥
विविक्त वासिनह सदा । भजंति मुक्तये मुदा ॥
निरस्य इंद्रियादिकम् । प्रयांति ते गतिम् स्वकम् ॥
तमेकमद्भुतम् प्रभुम् । निरीहमीश्वरम् विभुम् ॥
जगद्गुरुम् च शाश्वतम् । तुरीयमेव केवलम् ॥
भजामि भाव वल्लभम् । कुयोगिनाम् सुदुर्लभम् ॥
स्वभक्त कल्प पादपम् । समम् सुसेव्यमन्वहम् ॥
अनूप रूप भूपतिम् । नतोऽहमुर्विजा पतिम् ॥
प्रसीद मे नमामि ते । पदाब्ज भक्ति देहि मे ॥
पठंति ये स्तवम् इदम् । नरादरेण ते पदम् ॥
व्रजंति नात्र संशयम् । त्वदीय भक्ति संयुताह ॥
मुनि सुतीक्ष्ष्ण द्वारा स्तुति – अरण्यकाण्ड
कह मुनि प्रभु सुन बिनती मोरी । अस्तुति करौं कवन बिधि तोरी ॥
महिमा अमित मोरि मति थोरी । रबि सन्मुख खद्योत अँजोरी ॥
श्याम तामरस दाम शरीरम् । जटा मुकुट परिधन मुनिचीरम् ॥
पाणि चाप शर कति तुणीरम् । नौमि निरंतर श्री रघुवीरम् ॥
मोह विपिन घन दहन कृशानुह । संत सरोरुह कानन भानुह ॥
निशिचर करि बरूथ मृगराजह ॥ त्रातु सदा नो भव खग बाजह ॥
अरुण नयन रजीव सुवेशम् । सिता नयन चकोर निशेशम् ।
हर हृदि मानस बाल मरालम् । नौमि राम उर बाहु विशालम् ॥
संसय सर्प ग्रसन उरगादह । शमन सुकर्कश तर्क विषदह ॥
भव भंजन रंजन सुर यूथह । त्रातु नाथ नो क्ऱ्६इपा वरूथह ॥
निर्गुण सगुण विषम सम रूपम् । ग़्यान गिरा गोतीतमनूपम् ॥
अमलम अखिलम अनवद्यम अपारम् । नौमि राम भंजन महि भारम् ॥
भक्त कल्प पादप आरामह । तर्जन क्रोध लोभ मद कामह ॥
अति नागर भव सागर सेतुह । त्रातु सदा दिनकर कुल केतुह ॥
अतुलित भुज प्रताप बल धामह । कलि मल विपुल विभंजन नामह ॥
धर्म वर्म नर्मद गुण ग्रामह । संतत शम तनोतु मम रामह ॥
जदपि बिरज ब्यापक अबिनासी । सब के हृदयं निर्ंतर बासी ॥
तदपि अनुज श्री सहित खरारी । बसतु मनसि सम काननचारी ॥
जे जानहिं ते जानहुं स्वामी । सगुन अगुन उर अंतरजामी ॥
जो कोसलपति राजिव नयना । करौ सो राम हृदय मम अयना ॥
अस अभिमान जाइ जनि भोरे । मैं सेवक रघुपति पति मोरे।
श्रीराम के राज्याभिषेक के पश्चात् स्तुति – उत्तरकाण्ड
जय राम रमारमनम शमनम् । भव ताप भयाकुल पाहि जनम् ॥
अवधेश सुरेश रमेश विभो । शरणागत माँगत पाहि प्रभो ॥
दसशीश विन्नशन बीस भुजा । कृत दूरि महा महि भूरि रुजा ॥
रजनीचर बृंद पत।ग रहे । सर पावक तेज प्रचंड दहे॥
महि मंदल मंदन चारुतरम् । धृत सायक चाप निषंग बरम् ॥
मद मोह महा ममता रजनी । तम पुंज दिवाकर तेज अनी ॥
मनजात किरात निपात किये । मृग लोग कुभोग सरेन हिये ॥
हति नाथ अनाथनि पाहि हरे । विषया बन पाँवर भूलि परे ॥
बहु रोग बियोगिन्हि लोग हये । भवदंघ्रि निरादर के फल ए ॥
भव सिंधु अगाध परे नर ते । पद पंकज प्रेम न जे करते ॥
अति दीन मलीन दुखी नितहीं । जिन्ह कें पद पंकज प्रीत नहीं ॥
अवलंब भवंत कथा जिन्ह कें । प्रिय संत अनंत सदा तिन्ह कें ॥
नहिं राग न लोभ न मान मदा । तिन्ह कें सम बैभव वा बिपदा ॥
एहि ते तव सेवक होत मुदा । मुनि त्यागत जोग भरोस सदा ॥
करि प्रेम निरंतर नेम लियें । पद पंकज सेवत शुद्ध हियें ॥
सम मानि निरादर आदरही । सब संत सुखी बिचरंति मही ॥
मुनि मानस पंकज भृंग भजे । रघुवीर महा रनधीर अजे ॥
तव नाम जपामि नमामि हरी । भव रोग महागद मान अरी ॥
गुन सील कृपा परमायतनम् । प्रनमामि निरंतर श्रीरमनम् ॥
रघुनंद निकंदय द्वंद्व घनम् । महिपाल बिलोकय दीन जनम् ॥
बार बार बर मागउं हरषि देहु श्रीरंग ।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग ॥
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